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अ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा। अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वश॑म्भुव॒माप॑श्च वि॒श्वभे॑षजीः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apsu me somo abravīd antar viśvāni bheṣajā | agniṁ ca viśvaśambhuvam āpaś ca viśvabheṣajīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒प्ऽसु। मे॒। सोमः॑। अ॒ब्र॒वी॒त्। अ॒न्तः। विश्वा॑नि। भे॒ष॒जा। अ॒ग्निम्। च॒। वि॒श्वऽश॑म्भुवम्। आपः॑। च॒। वि॒श्वऽभे॑षजीः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:23» मन्त्र:20 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:20


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे जल किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे यह (सोमः) ओषधियों का राजा चन्द्रमा वा सोमलता (मे) मेरे लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) बीच में (विश्वानि) सब (भेषजा) ओषधि (च) तथा (विश्वशंभुवम्) सब जगत् के लिये सुख करनेवाले (अग्निम्) बिजुली को (अब्रवीत्) प्रसिद्ध करता है, इसी प्रकार (विश्वभेषजीः) जिनके निमित्त से सब ओषधियाँ होती हैं, वे (आपः) जल भी अपने में उक्त सब ओषधियों और उक्त गुणवाले अग्नि को जानते हैं॥२०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब पदार्थ अपने गुणों से अपने-अपने स्वभावों और उनमें ओषधियों की पुष्टि करानेवाला चन्द्रमा और जो ओषधियों में मुख्य सोमलता है, ये दोनों जल के निमित्त और ग्रहण करने योग्य सब ओषधियों का प्रकाश करते हैं, वैसे सब ओषधियों के हेतु जल अपने अन्तर्गत समस्त सुखों का हेतु मेघ का प्रकाश और जो जलों में ओषधियों का निमित्त और जो जल में अग्नि का निमित्त है, ऐसा जानना चाहिये॥२०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्य इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

यथाऽयं सोमो मे मह्यमप्स्वन्तर्विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रवीज्ज्ञापयत्येवं विश्वभेषजीरापः स्वासु सोमाद्यानि विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रुवन् ज्ञापयन्ति॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अप्सु) जलेषु (मे) मह्यम् (सोमः) ओषधिराजश्चन्द्रमाः सोमलताख्यरसो वा (अब्रवीत्) ज्ञापयति। अत्र लडर्थे लुङन्तर्गतो ण्यर्थः प्रसिद्धीकरणं धात्वर्थश्च। (अन्तः) मध्ये (विश्वानि) सर्वाणि (भेषजा) औषधानि। अत्र शेश्छन्दसि बहुलम् इति लोपः (अग्निम्) विद्युदाख्यम् (च) समुच्चये (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः क्विप् च इति क्विप्। (आपः) जलानि (च) समुच्चये (विश्वभेषजीः) विश्वाः सर्वा भेषज्य ओषध्यो यासु ताः। अत्र केवलमाम० (अष्टा०४.१.३०) अनेन भेषजशब्दान्ङीप् प्रत्ययः॥२०॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे पदार्थाः स्वगुणैः स्वान् प्रकाशयन्ति तथौषधिगणपुष्टिकारकश्चन्द्रमा ओषधिगणग्राह्याणीति प्रकाशयन्त्यः सर्वौषधिहेतव आपः स्वान्तर्गतं समस्तकल्याणहेतुं स्तनयित्नुं प्रकाशयन्त्यर्थात् जलगतमौषधनिमित्तजलगतमग्निनिमित्तं चास्तीति वेद्यम्॥२०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सर्व पदार्थ आपापल्या गुणांनी आपापल्या स्वभावाला प्रकट करतात व औषधी पुष्ट करणारा चंद्र व औषधांमध्ये मुख्य सोमलता हे दोन्ही जलाचे निमित्त असून, ग्रहण करण्यायोग्य सर्व औषधींना प्रकट करतात तसे सर्व औषधींचा हेतू असलेले जल आपल्या अंतर्गत संपूर्ण सुखाचा हेतू असून मेघाचा प्रकाश, जलातील औषधीचे निमित्त व अग्नीचे निमित्त आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥ २० ॥